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जेन
महाभारत
इस प्रकार श्रीकृष्ण बलराम ( बलदाऊ ) के साथ चलने को तैयार हो गए। देर हो रही थी अत स्नान किए बिना ही चल पड़े। और जाकर यमुना में स्नान किया। अभी तक कृष्ण रुष्ट थे, उनके हृदय मां के अपमान की बात अभी तक चुभी हुई थी । इसलिए वे गम्भीर थे । बलराम ने समझ लिया कि कृष्ण अभी तक रुष्ट है । अतएव वे बोले - "कृष्ण भेया । तुम अभी तक नाराज हो ?"
में
" नाराजी की तो बात ही है। तुम ने नाता को गाली दी ।" श्री कृष्ण बोले ।
"मैं ने क्या गाली दी ?" बलराम ने कहा - मैने तो कोई अपशब्द अपने मुह से नहीं निकाला । '
" तुम ने उन्हें कहा नहीं कि तुम गूजरी जो हो कायरों की बात करती हो । क्या मेरी मां को तुम कायर समझते हो ? तुम ने उसके बेटे को नहीं देखा होता तो एक बात भी थी, आखिर मेरी रंगों में भी तो उसी का रक्त दौड़ रहा है । मैंने भी तो उसी की कोख से जन्म लिया है । और मैं कंस जैसे अपने को शूरवीर सममने वालो से भी टक्कर लेने से नहीं घबराता ।" कृष्ण ने बिगड़ कर कहा । उनका शब्द शब्द बता रहा था कि बलराम के शब्दों से उनके हृदय को कितना
आघात लगा था ।
बलराम बोले- नहीं तुम भी उसके बेटे नहीं हो, अगर उसके बेटे होते तो क्या पता कि तुम भी कैसे होते ?" श्रीकृष्ण को यह बात बढ़ी आश्चर्य जनक लगी, वे बोले - "कहीं तुम्हारा मस्तक तो नहीं फिर गया है, मुझे इतने कठोर शब्दों के प्रयोग के लिए क्षमा करना भैया | आज तुम बात ही ऐसी कर रहे हो कि मुझे आश्चर्य होता है ।" मैं जो कह रहा हूँ ठीक ही कह रहा हॅू ?"
" तुम्हारी मां देवकी है।" बलराम ने रहस्योदघाटन किया । "कौन देवकी ?"
"वही जो प्रायः तुम्हारे घर आया करती है, और तुम्हें प्यार किया करती है ।" बलराम ने कहा ।
"मेरी समझ में तुम्हारी बात नहीं आ रही तुम भैया, मुझे ठीक तरह बताओ कि यह क्या कह रहे हो ।” कृष्ण ने परेशान
होकर कहा ।