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कंस वध
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के लिए साहस किया और धनुष उठाकर वाण चढ़ाने का प्रदर्शन करके चला आया। सभी दातों तले उंगली दबा रहे हैं।" _वसुदेव को अपने पुत्र की वीरता व बल की इस अनुपम लीला का वृत्तांत सुनकर अपार हर्ष हुश्रा किन्तु साथ ही भय भी। उन्होंने कहा कि-तुम तुरन्त यहा से चले जाओ वरना कस तुम्हारी हत्या कर देगा, वह नहीं चाहता कि कोई भी व्यक्ति उससे अधिक बलवान हो।"
अनाधृष्टि तुरन्त वहां से शौरीपुर को चल पड़ा। मार्ग में उसने श्री कृष्ण को गोकुल में सौंप दिया।
इस प्रकार कस की आशा निराशा के रूप में परिवर्तित हो गई उसकी महत्वाकाक्षा पर पानी फिर गया। अब वह एकान्त बैठकर कुचले साप की भाति प्रतिशोध की भावना लिये हुए सोचने लगाज्योतिषियों ने जो जा लक्षण बतलाये थे वे लक्षण अक्षरशः सत्य सिद्व हुए हैं। केवल गजों व मल्लका लक्षण ही शेष हैं । निश्चय ही यह कुशल ग्वाल मेरे प्राणों का घातक है । अब कोई ऐसा उपाय सोचू जिससे कि इस नाग का सिर कुचला जा सके । क्या यही है वह जो चाणूर मल्ल व चम्पक और पश्नोत्तर को पछाड़ेगा नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता।" सोचते २ अन्तमें उसने यही निश्चय किया कि यदि यही वह बैरी है तो इसके लिए चाणूर मल्ल के दो हाथ ही काफी हैं प्रथम तो पद्मोतर और चम्पक दोनों हस्ती ही उसे जोवित न छोडेगे । वहाँ से किसी तरह बचभी निकला तो चाणूर के हाथों अवश्य ही मारा जायेगा, फिर तो मेरा मार्ग साफ हो जायगा और निश्चय ही विश्वविजयी घनने जा सुअवसर प्राप्त हो जायगा।
इस प्रकार उसने सोच समझकर मल्ल युद्ध प्रदर्शनी का प्रबन्ध किया । कस द्वारा मल्ल युद्ध प्रदर्शनी का आयोजन होने के कारण वाहर से आये नरेश उसे देखने की चाह से वहीं रुक गए।
इधर वसुदेव को भी सच्चाई का पता चल गया था, जब उन्होंने सुना कि अचानक कस मल्ल युद्ध का प्रबंध कर रहा है, तो उन्हें उसके पीछे किसी रहस्य की गध आई। वे सोचने लगे यह कस की कोई कूटनीतिक चाल है। अतएव उन्होंने इस विचार से कि कहीं कोई अनर्थ न हो जाय समुद्रविजय आदि भाइयों तथा अकर आदि