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जैन महाभारत अर्जन की विनम्रता देख कर आचार्य और अन्य लोग बड़े प्रसन्न हुए । जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा । किसी ने कहा-भगवान ने भी कहा है कि-"धम्मस्स विणओ मूल" अर्थात् विनय ही धर्म का मूल है अतः नम्रता और विनय शीलता की कला में अर्जुन सर्वप्रथम है। और कलाएं तो बाद को देखेंगे, सर्वप्रथम तो उनकी यह कला देख ली। दूसरा बोला---जो अपने गुरुके प्रति इतनी भक्ति रखता है, वह अवश्य ही विशिष्ट विद्यावान होगा। तीसरा बोला-देखिये १०५ में अकेला अलग चमकता है। किसी में इतनी विनय शीलता देखी आपने ?"
द्रोण ने मंच पर ही से कहा-"अर्जुन बहुत विनयवान है" और फिर उन्होंने अर्जुन के सिर पर हाथ फेर कर कहा कि-वत्स ! तुमने अपनी वाणी से तो दर्शकों को जीत लिया अब अपनी कला से जीतो।"
अर्जुन ने गुरु की आशा से वीरता और धीरता से अपना धनुष उठाया और अग्नि बाण धनुष पर चढ़ाया। विशेष दृढ़ता के साथ अग्नि वाण छोड़ा, अग्निवाणका छूटना था कि एक लपलपाती ज्वाला प्रगट हुई। दर्शक घवरा गये, कुछ इतने भयभीत हो गए कि सोचने लगे कि यह अग्नि कहीं बढ़कर हमें न जलादे । इतने ही में उसने वरुण बाण छोड़ा और अग्नि शांत हो गई। इस कला एवं कौशल को देख कर लोगों ने करतन ध्वनि करके अजुन की प्रशंसा की। कुछ लोग सोचने लगे कि अर्जुन में कोई दैवी शक्ति जान पड़ती है, नहीं तो एक वाण मारते ही आग ही आग और दूसरे वाण से पानी ही पानी कैसे फैल सकता है।
अर्जन के वाण से इतना पानी होगा कि लोगों को बह जाने की श्राशंका होने लगी। कुछ लोग कह भी उठे "अर्जन । अपने इस जल को रोको' उसी समय अर्जुन ने पवन बाण चलाया जिसने सारा पानी एक दम सोख लिया ।
लोग यह देखकर आश्चर्य कर ही रहे थे कि एक बाण और चला, जिसके कारण चारों ओर अंधकार ही अधकार छा गया । वह था तिमिर बाण । इस घोर रात्रि के वातावरण से लोग चकित रह गये,