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जैन महाभारत सो गया | दुर्योधन ने अच्छा अवसर देख उसे एक लता से बांध दिया और दूसरों की ऑख बचाकर गगा जी में फेंक दिया । ज्योही बंधा हुआ निद्रासन भीम गगाजल में पहुंचा, उसकी आंख खुल गई और तुरन्त लता तोड़कर अपना शरीर बवन मुक्त करके गगा से बाहर आकर मुस्कराने लगा। दुर्योधन जो अभी यह सोच रहा था कि चलो अच्छा हुआ, भीम से तो तनिक से प्रयत्न द्वारा ही छट्टी मिली, उसे गंगा तट पर देखते ही सुन्न हो गया । उसके मन में आशंका जमी कि अब जरूर भीम उसकी हड्डी पसली तोड़ डालेगा। परन्तु उसकी शंका निमूल सिद्ध हुई जब भीम ने हसकर कहा "दुर्योधन | अब तो आप सोते हुए से भी हंसी करने लगे। अपनी बार को रुष्ट मन होना।" ___मैं तो इसी प्रतीक्षा मे खड़ा था कि यदि कहीं जल मे भी तुम्हारी
ऑख न खुलीं, तो मुझे ही निकालना पड़ेगा, दुर्योधन ने भीम की भूल से लाभ उठाने के लिए उसकी भूल को विश्वास में परिणत करने. की इच्छा से कहा।
"तो आप समझते हैं कि मैं कोई कुम्भकरण की नींद सोता हूं।" भीम ने हंसकर कहा।
तुम खाते ही इतना क्यों हो कि खाने के बाद सुधि ही नहीं रहती । देखो अब से अधिक मत खाना (मैंने यही पाठ पढ़ाने के लिए नो हंसी की थी)।
"तो भाई साहब ! खाता जितना हूँ उतना ही बल भी रखता हूं। आपको इस प्रकार कोई बॉधकर गंगा में फेंक देता तो सुरधाम सिधार गए होते" भीम ऑखें नचा कर बोला-और बात समाप्त हो गई।
एक दिन चुपके से दुर्योधन ने भीम के भोजन मे विप मिला दिया और बड़े प्रेम से उसे बुला कर भोजन कराने लगा भीम भोजन करने बैठा तो कहता जाता "भाई साहव कदाचित आज पहली बार ही आप हमें भोजन करा रहे हैं। क्या मेरी ओर से जो श्रापको रोष था वह सारा थूक दिया ? क्या अब आप समझ गए कि मैं कभी भी कोई उदण्डता इस लिए नहीं करता कि आप या आपके भ्राता मुझे अच्छे नहीं लगते, बल्कि मेरा तो स्वभाव ही ऐसा है। ... ओहो ! आज के भोजन में जो स्वाद है वह तो कभी नहीं पाया। खूब छक कर नाऊँगा, हाँ बुरा मत मानना।"