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कौरव पाण्डों की उत्पत्ति
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न दुर्योधन के पावह अन्य को
दया। धृतराष्ट
हुए। जिनमें से पहले का नाम नकुल, शत्रुओ के कल का नाश करने वाला रखा गया, और दूसरे को सहदेव की सज्ञा दी गई । यह दोनों ही गुणवान, तेजवान थे । आगे जाकर दोनों ही शस्त्र तथा शास्त्र विद्या में विशारद हुए । इस प्रकार पाण्डू नृप के पाँच पुत्र हुए। जिस प्रकार निरोगी, स्वस्थ पुरुष अपनी पॉचों इन्द्रियों का सुख भोगता है। इसी प्रकार पाण्डू नृप स्त्रियोचित सम्पूर्ण गुणों से युक्त कन्ती और सुन्दरी माद्री सहित, पॉचों परम प्रतापी पुत्रों के साथ आनन्द पूर्वक सांसारिक सुखों को भोगता है। ___ इधर परम प्रीति को प्राप्त हुई धतराष्ट्र की प्यारी गांधारी वैभव में रहकर एश्वर्य में लिप्त थी। धृतराष्ट्र गाधारी के मुख कमल पर भ्रमर के समान केलि-क्रीड़ा करते हुए तृप्त नहीं होते थे। वे एक दूसरे का वियोग क्षण भर को भी सहन नहीं करते थे । अन्य सात रानियां भी धृतराष्ट्र को प्रिय थीं पर गांधारी का जो स्थान था वह अन्य को कहाँ प्राप्त था। गांधारी ने दुर्योधन के पश्चात दुश्शासन को जन्म दिया। धृतराष्ट्र के कुल मिलाकर सौ पुत्र हुए। शेष १८ के नाम इस प्रकार है:-दुद्धर्षण २~-दुर्मर्षण, ३-रणांत ४-सुमाघ ५--विन्द ६-सर्वसह ७-अनुर्विद ८-सभीम ६-सुवन्हि १०-दुसह ११-दुरुल १२सुगात्र १३-दु कर्ण १४-दुश्रव १५-वरवश १६-अवकीर्ण १६-दीर्घदशी १८-सुलोचन १६-उपचित्र २०-विचित्र २१-चारचित्र २२-शरासन २३-दुर्मद २४-दुःप्रगाह २५-मुमुत्सु २६-विकट २७-ऊर्णनाभ २८-सुनाम २६-नद, ३०-उपनन्द ३१-चित्रवाण ३२-चित्रवर्मा ३३-सुवर्मा, ३४-दुर्विमोचन ३५- अयोबाहु ३६--महाबाहुः३७-श्रुतवान ३८--पदमलोचन ३६-भीमवाहू ४०-भीमबल ४१-सुषेण ४२-पण्डित ४३-श्रुतायुध ४४-सुवीय ४५--दण्डधर ४६-महोदर ४७-चित्रायुध ४८-नि पगी ४६-पाश ५०-वृ दारक ५१--शत्रु जय ५२--सतृसह ५३-सत्यसध ५४सुदुःसइ ५५-सुदर्शन ५६--चित्रसेन ५७-सेनानी ५८-दु पराजय ५६-पराजित ६०-कुण्डशामी ६१-विशालाक्ष ६२-जय ६३-दृढ़हस्त ६४-सुहस्त ६५-यातवेग ६६-सुवचस ६७-आदित्यकेतु ६८-बह्वासी ६६-निवध ७०-प्रियोदी ७१-कवाची ७२-रणशोड ७३-कु डधार ७४-धनुर्धर ७५-उप्ररथ ७६-भीमरथ ७७-शूरवाहू ७२-अलोलुप