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कुन्ती और महाराज पाण्डू
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mmmmmmmmmmmmmm पुप्प जिनके पास रुप और सुगन्ध के अतिरिक्त और कुछ भी तो नहीं । यह सभी को अपने रूप और सुगध से लाभान्वित करते हैं, वे वे पृथ्वी से भोजन लेते है और पृथ्वी को उसके बदले में सुगन्ध तथा सुन्दरता प्रदान करते हैं, लोगों को सुगन्ध और सौंदर्य मुफ्त में ही देते हैं" पास ही में खडी एक कली अनायास ही चटकी, और उसके अधरों पर खेलती मन्द मन्द मुस्कान एक अट्टहास के रूप में परिणत हो गई। मानो वह राजा पांडू के प्रश्न पर उनके विचारों पर खिलखिला पडी हो। यह कलिया दूसरों को सुखी और प्रफुल्लित देख कर स्वय अपना सीना खोल कर हसने लगती हैं, इनमें ईर्षा हो तो वे खिल न सकें। यही है उनके जीवन का रहस्य । वह कली जो अभी अभी पुप्प बनी थी, इस रही थी ओर कदाचित अपनी मूक भाषा में कह रही थी "रे नृप । तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तुम्हारे ही विचारों में निहित है । मन की आखे खोलो। वहाँ तुम्हें सब कुछ मिल जायेगा, हॉ सत्र कुछ ।
हमारा जीवन त्यागमय है। हम जितना जिससे लेते हैं उमको उससे अधिक दे देते हैं पृथ्वी से भोजन लिया, सुगन्ध और सौंदर्य दिया। और सारे जगत को सुगधित एव रूपवान बनाने में अपना जीवन लगा देते हैं । हम किसी में कोई भेद नहीं करते । हमारे लिये सारा समार समान है। हमारा कोई वैरी नहीं, हम सभी को अपना मित्र समझते हैं, उन्हे भी जो हमारी मुस्कान पर मुग्ध होकर हमारी प्रशसा करते हैं और उन्हे भी जो प्रशसात्मक दृष्टि डालकर हमे तोड़ लेते हैं और इस प्रकार अपनी खुशी के लिए हमारा जीवन समाप्त कर डालते हैं, हमारी हत्या कर देते हैं। हम किसी से द्वेष नहीं, किसी से घृणा नहीं, उनसे भी नहीं जो पापी हैं। हमारी सुगन्ध और हमारा रूप सभी के लिए है। यही है हमारे त्यागमय जीवन का रहन्य पौर यही है हमारी जीवन पर्यन्त मुस्कान बल्कि प्रट्टहास का रहस्य । जो गुणी हैं, हमारे जीवन का रहस्य समझ कर अपने जीवन को त्यागमय बनाते है और अन्त में चिर सुख प्राप्त करते है। जो प्रजानी है
भोगी में लिप्त रहते है और एक दिन हमारी पंखुड़ियों की भानि धृल मे मिल जाते हैं।"
पिन्तु राजा पारद उस समय पली, अभी अभी विफमित हुई
सावन लगा देते जगत को सम भोजन लिय