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महाराणी गगा
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वह तो योगी जीवन का भक्त है, पता नहीं कब पंच महाव्रती साधु हो जाय" "मेरी एक शर्त स्वीकार कीजिए" गंगा बोली।
"एक वर दीजिए, जिसे मैं जब चाहे मॉग सकू। और यदि आप मेरे उस वर को पूर्ण न करेंगे तो अपनी सन्तान को लेकर मैं अपने पिता के यहा चली आऊगी।"
शान्तनु ने बात स्वीकार कर ली। गगा प्रसन्नता पूर्वक विवाह के लिए तैयार हो गई, और कुछ दिनों बाद गगा पटरानी बन कर • शान्तनु के महल में जा पहुची। शान्तनु गङ्गा जैसी परम सुन्दरी गुणवती और पवित्र नारी को पाकर बहुत सन्तुष्ट हुआ। आनन्द से दिन व्यतीत होने लगे। पारासर एक मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर मुनि हो गया। और कुछ दिनों बाद गंगा से एक चांद सा पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। सारा महल दुल्हन की भांति सज गया। जन्म महोत्सव अभूत पूर्व रूप से मनाया गया। चारों ओर राग रग की महफिलें, दान और दावतों का जोर । जयजय कारो से सारा महल गू ज उठा। वाद्य मन्त्रों के स्वर वातावरण में घुल-मिल गए।
* गागेय कुमार * नवोदित शिशु का गागेय कुमार नाम रखा गया। गगा जिस पर शान्तनु पूरी तरह आसक्त थे, पुत्ररत्न की प्राप्ति के उपरान्त, वैभवपूर्ण वातावरण में हर्षे पूर्वक रहने लगी । शान्तनु का प्रेम और भी अधिक हो गया, वे राजकुमार पर अधिकाधिक प्रेम दर्शाने लगे। पालन पोषण का सुन्दर प्रबन्ध कर दिया गया। प्रेम और सन्तोष के इस सयुक्त वातावरण में राजा और रानी, शान्तनु और गगा जीवन के स्वर्णिम दिन व्यतीत करते रहे । एक दिन कुछ मुनिगण के आगमन की सूचना मिली । शान्तनु गगा और गागेय कुमार को साथ लेकर दर्शानार्थ गए। मुनि ने अपने उपदेश मे कहा कि यह ससार असार है, इस में कृत्रिम सुख तो बहुत है, पर वास्तविक सुख, आत्मिक सुख आगार और अणगार धर्म का पालन करने से ही प्राप्त हो सकता है। यह वैभव और लक्ष्मी द्वारा खरीदा जाने वाला सुख तो क्षण भगुर है, श्रात्मा की