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महाराणी गंगा
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महाराज शान्तनु ने मुड़ कर देखा। एक व्यक्ति हाथ जोड़े खडा था। "कहो | क्या बात है ?" शान्तनु ने नवागन्तुक से पूछा । ___"महाराज | निमित्त ज्ञानी की भविष्य वाणी कदाचित सत्य सिद्ध होना चाहती है-आप कदाचित उसी रूपवती सुन्दरी के सम्बन्ध में सोच रहे हैं , जो अभी अभी यहाँ खडी थी।" नवागन्तुक ने कहा। ___"हॉ, हॉ, गगा के बारे में ही सोच रहा था। निमित्त ज्ञानी की वाणी क्या है ?" बिना यह पूछे ही कि आगन्तुक अनायास ही इस प्रकार की बाते क्यो कर रहा है, शान्तनु ने कहा । वे अपने मनोभाव छुपा न सके । यह था गगा के प्रति उनके हृदय में अकुरित अनुराग का प्रभाव।
'महाराज | गगा के पिता ने एक बार सत्यवाणी नामक निमित्त ज्ञानी से गगा के विवाह के सम्बन्ध में प्रश्न किया था, उन्हों ने बताया था कि गगा महाराज शान्तनु की धर्म पत्नी वनेगी" आगन्तुक, जो विद्याधर था ने उत्तर दिया।
महाराज शान्तनु को प्रोत्साहन मिला और उन्हें अपना स्वप्न साकार होता प्रतीत हुआ, उन्हें अपनी इच्छा कार्य रूप में परिणत हो जाने की आशा हो गई। वे तुरन्त रत्नपुर की ओर चल पड़े। + x
x राजा होकर मैं आपके पास एक प्रार्थना लेकर आया हूँ" शान्तनु ने जन्हू से कहा।
"प्रार्थना कैसी ? महाराज | जन्हू बोला, आप आज्ञा दीजिए।"
"राज्य काज होता तो आज्ञा दी जा सकती थी, पर इस समय तो मैं अपनी एक इच्छा की पूर्ति के लिए आप के पास निवेदन करने आया हू" शान्तनु निवेदक की शैली में विनय पूर्वक बोले।
"कहिए | क्या आज्ञा है।" __"मैं आपकी पुत्री, रूपवती, गुणवती और पवित्र गगा को अपनी जीवन सहचरी बनाने को उत्सुक हूँ" शान्तनु ने अपनी इच्छा प्रगट की।