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जैन महाभारत विशेष हैं। कहते हैं जब असुरो ने देखा कि कृष्ण कन्हाई संसार में जन्म ले चुके हैं और असुरो का साम्राज्य पृथ्वी पर नहीं चल सकेगा तो वे उन्हे समाप्त करने की युक्ति सोचने लगे।
एक दिन कृष्ण खेलते फिर रहे थे। शकुन और पूतना असुरी आई, उन्होंने यशोदा का रूप धर लिया और स्तनो पर जहर लगा कर उन्हें पिलाया, कृष्ण ने बड़े चाव से दूध पिया । पर विष उनका कुछ न बिगाड़ सका। कहते हैं कृष्ण ने उनके स्तनों से उन की सारी जीवन शक्ति ही खींच ली और वे वहीं ढेर हो गई।
एक बार कृष्ण बालको के साथ खेल रहे थे। उनकी गेद पानी में जा पड़ी। जल मे शेषनाग रहता था, किसी को उस जल से गंद निकालने का साहस न हुआ । श्री कृष्ण तुरन्त जल में कूद गए। शेषनाग उन्हे डसने के लिए आया, पर कृष्ण ने उन्हें नाथ लिया। उस की शैया बना कर खड़े हो गए। बालको और अन्य दर्शकों को इस अभूत पूर्व साहस को देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। पर कृष्ण खेलते हुए बाहर आये।
उन्हे बांसुरी बजाने का बड़ा शौक था, इतना माधुय था उनकी बांसुरी की तान मे कि सभी नर नारी उस पर आसक्त हो जाते। उनकी गऊएं भी उनकी तान को पहचान गई थीं। बासुरी की तान पर ही गऊए दौड़ कर कृष्ण कन्हाई के पास आ जातीं । ग्वाले उन के सगी साथी थे, वे कृष्ण की सभी आज्ञाओ का पालन करते । ग्वाल कन्याए उनकी ओर आकर्षित थीं, वे सभी उनसे ठिठोलियां करती रहतीं। वे सभी को प्रिय थे इस लिए किसी की मटकी से मक्खन ले कर खा लेते । व्यंग्य और हास्य उनकी वाणी मे भरा था, पर उनके व्यगों से कोई भी रुष्ट न होती।
ग्वाले उनके चारों ओर नाचते गाते । कृष्ण उन्हे शिक्षा देते, वे निर्भीकता का पाठ पढ़ाते ।