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महाभारत नायक बलभद्र और श्रीकृष्ण
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थायोजन किया। इस महोत्सव की धूम कई महीनों तक चलती रही। सब लोग नाना प्रकार के रगरेलिया मे मग्न दिखाई देते थे। नाना प्रकार के राग रग, कहीं नृत्य गान व भोज्यपान आदि की व्यवस्था कर खुशिया मनाई जाती रही। नगर निवासियों का भी इस अवसर पर उत्साह दर्शनीय था । मथुरा नगरी इस समय सचमुच. देवराज इन्द्र की पुरी अमरावती के समान सब प्रकार के सुख विलास वैभव वन धान्य और आनन्द भोग से परिपूर्ण दिखाई देती थी।
एक अद्भुत घटना* . इसी बीच एक दिन मासोदवासी अतिमुक्त अणगार पारण के लिये क्स के यहाँ आ गये । उम दीर्घ तपस्वी को देखते ही मद में उन्मत्त हुई कस पत्नी जीवयशा तत्काल उन्हें पहचान गयी। और बोली देवर बहुत अच्छा हुआ जो इस अवसर तुम आ गए, यह तुम्हारी वहिन देवकी का विवाहोत्सव ही मनाया जा रहा है अतः आयो हम
और तुम इस आयोजन का आनन्द लूटे' यह कहती हुई उनके गले मे लिपट गई। __ मुनिराज को उसकी इस प्रवृत्ति पर महा आश्चर्य हुआ। वे उसके भविष्य को जानते थे अत तत्क्षण उसकी आलिंगन पारा से अपने को मुक्त करते हुए उन्होंने कहा-हे जीवयशा तू क्यों अभिमान में भृम रही है 'यन्निमित्तोऽयमुत्सव तद्गर्भ सप्तमो हतापति पित्रोस्त्यदीययो" अर्थात जिस देवकी के विवाहोपलक्ष्य में यह उत्सव मना रही है उसका सातवां गर्भ ही तेरे पति और पिता का निघातक होगा।' __ मुनिराज का यह दुःखमय वचन सुन कर जीवयशा का सारा नशा उतर गया 'पौर दुखद भविष्य की श्राशका से वह थर थर कॉपने लगी । अन्त में मुनिराज के चले जाने पर उसने तपस्वी के
आने आदि का सारा विवरण कह मुनाया। ___ यह सारा वृत्तान्त सुन कर कन 'अत्यन्त चिन्तित हुआ । उसकी बासों के 'पागे अन्धेरा छा गया उसे एक भी नहीं सूझ रहा था कि पर किया जाय, 'पोर क्या न किया जाय, क्योंकि उसे विश्वास था कि मुनिराज का वचन फभी असत्य नहीं हो सकता। उन्होंने जो कुछ कहा है वह एक न एक दिन होकर ही रहेगा। किन्तु कन पडा माहनी भौर तर प्रवृति का व्यक्ति था ऐसी रोटी मोटी बातों से निराश होना