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________________ २२० जैन महाभारत दोनों इसी को दे दो मुझे कुछ नहीं चाहिये । इसे छोड़ दो, इसके इस प्रकार दो टुकड़े मत करो। कहती हुई उसके पैरों मे पछाड़ खाती हुई गिर पड़ी । यह देखते ही वसुदेव ने कहा कि 'देखो यह सच्ची मां है और दूसरी स्त्री मिथ्या वादिनी है। जिसके हृदय में इस बच्चे के प्रति इतनी दया है वही सच्ची मां हो सकती है, इसने धन की कुछ परवाह न कर बच्चे को छोड देना उचित समझा, पर दूसरी को धन के लोभ के कारण बच्चे के दो टुकड़े होते देखकर भी कुछ दया न आई । वसुदेव को इस प्रकार उचित निर्णय देते देख सभी लोग शतशत मुख से उनकी प्रतिभा और न्याय निपुणता का धन्यवाद करने लगे । उस सच्ची माता को बुलाकर महाराज ने कहा कि देवी यह पुत्र तुम्हारा ही है और धन की अधिकारिणी भी तुम ही हो । इस पापिन को तुम अपनी इच्छानुसार अन्न वस्त्र देती रहना । तदुपरान्त वसुदेव बहुत दिनों तक राजा का आतिथ्य ग्रहण करते हुए वहीं रहते रहे । कुछ दिनों के पश्चात् महाराज ने अपनी पुत्री भद्रमित्रा और उनके अमात्य ने अपनी क्षत्राणी पत्नी से उत्पन्न सत्य रक्षिता के साथ वसुदेव का विवाह कर दिया । ये दोनों कन्याऍ संगीत और नृत्य आदि कलाओं में अत्यन्त निपुण थी । ये दोनों पत्नियाँ वसुदेव का इन कलाओं के द्वारा मनोरजन करने लगीं। किन्तु वसुदेव तो घुमक्कड़ और नये नये स्थानों को देखने के लिए सदा उत्सुक म्वभाव के थे । इस लिये एक दिन वे कोल्लयर नामक नगर को देखने के लिए अपनी पत्नी को सूचित किए बिना ही निकल पड़े। वसुदेव की कला निपुणता वसुदेव जहाँ भी जाते मार्ग में लोग उनके भोजन, वसन, शयन, आसन आदि का प्रबन्ध बड़े सम्मान के साथ कर देते । इस प्रकार चलते-चलते वे चारों ओर से अनेक रमणीय उद्यानो प्रयावों और मंडप से सुशोभित उच्च अट्टालिकाओ और प्रासादों से रजतगिरि के समान भासित होने वाले अत्यन्त दृढ़ प्राकार युक्त कोल्लयर नगर मे जा पहुचे । वहा घूमते-घूमते वे एक अशोक वन मे जा कर वहाँ के रक्षक माली से कहने लगे कि हम को एक दिन के लिए विश्राम स्थान चाहिए।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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