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जैन महाभारत
कि उसी समय भगीरथी नामक एक धात्री ने उन्हें वधिकों के हाथों से छुड़ाकर गन्धसमृद्धिपुर नामक नगर में पहुँचा दिया । बात यों हुई कि सोमश्री की पूर्वोक्त सखी प्रभावती के पिता महाराज गंधार पिङ्गल को किसी ने बतला दिया था कि प्रभावती का विवाह वसुदेव के साथ होगा, इसीलिये उसने भगीरथी को वसुदेव को लाने के लिये भेज दिया। किन्तु इधर तो उनका मृत्यु वधू से विवाह हो रहा था परतु सगीरथी ने ठीक समय पर पहुँच कर उन्हें वधिकों के हाथो से छुड़ा दिया। अत. "जाको राखे साईया मार सके न कोया" वाली उक्ति यहां सम्यक रूप से चरितार्थ हुई। उधर गन्धसमृद्धिपुर पहुँचने पर महाराज पिंगल ने वसुदेव के साथ अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह कर दिया। अब वे वहां आनदपूर्वक अपना समय यापन करने लगे।
कुछ समय पश्चात् वे वैताढ्य पर्वत की कौसला नामक नगरी में जा पहुंचे। वहाँ के कौशल नामक विद्याधर राजा ने अपनी पुत्री सुकोशल का विवाह उनसे कर दिया । इस प्रकार अनेक विद्याधरों तथा भूचर राजाओं की अनेक कन्याओ के साथ विवाह कर वसुदेव का समय बड़े आनन्द के साथ बीतने लगा।
ब वे वहां आवाय पर्वत पर राजा ।
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