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जैन महाभारत विद्या ग्रहण कर मैं अपने राज्यभाग को भोगती हुई सुखपूर्वक अपनी माता के पास रहने लगी।
मेरा भाई मानसवेग बड़ा दुराचारी है, वह आज किसी मानवी को उड़ा लाया है । उसे प्रमदवन मे रख मुझे कहने लगा कि मैं इस सुन्दरी पर बलात्कार नहीं कर सकता क्योकि सोये हुए दम्पतियों पर बलात्कार करने से विद्याधरो की विद्या नष्ट हो जाती है। अतः तू जा कर उस के मन को किसी प्रकार मेर अनुकूल बना दे। तदनुसार मैंने प्रमद वन में जा कर मुआये हुए कमल के समान उदास मुखमण्डल वाली सुन्दरी को देखा, ओर उसे इस प्रकार समझाने का प्रयन किया___"आज यहा तुम्हे इस प्रकार उदास न होना चाहिये क्योंकि पुण्य कार्य करज वाली स्त्रियाँ ही देवलाक के सदृश स्थान मे आ सकती है, इसी लिये तुम्हे विद्यावर लोक म लाया गया है । मै राजा मानसवेग की बहिन हूँ, मेरा भाई मानसवेग अत्यन्त सुन्दर, कलाओ में प्रवीण, युवक और कुलीन है । जो देखता है वही उसकी प्रशसा करने लगता है, अब तुम्हे मनुष्य पति से क्या लाभ ? श्रेष्ठकुल मे उत्तम पति को पाकर हीन कुलोत्पन्न स्त्री भी सर्वत्र सम्मानित हाती है । इस लिये तू शोक न कर और मनुष्य रूप मे दुर्लभ भोगो का यहाँ रहकर अनुभव कर ।
यह सुनकर उस ने उत्तर दिया, हे वेगवती | मैंने दासियो के मुख से मुना था कि तू बड़ी विदुपी और समझदार है, किन्तु तू ने जो कुछ कहा वह तो सर्वथा अयुक्तियुक्त है अथवा तू ने अपने भाई के प्रेम के कारण यह प्राचार विरुद्ध बात कह दी। क्योकि माता-पिता कन्या को जैम भी पति के हाथो मौप दे उस जीवन भर उसी को अपना उपास्य देव मान कर उसकी सेवा करनी चाहिए । ऐसा करने मे वह इस लोक में यशोभागिनी तथा परलोक मे सुगति गामिनी होती है। यही कुलवधुओं का धर्म है ओर तू ने जो मानसवेग की प्रशंसा की वह भी चिल्कुल भृट है । क्योंकि राज्यधर्म के अनुसार आचरण करने वाला कोई भी श्रेष्ठ पुस्प अन्नात कुल शीला किसी स्त्री का हरण करके नहीं ले 'पाना । जरा मोची तो सही यह उसकी शूरता है या कायरता, यदि उसी ममय आर्य पुत्र जाग जाते तो वह कभी यहाँ जीवित न लौट