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चारुदत्त की आत्मकथा साथी व्यापारी जब मुझे मारने लगे तो इन्होंने ममे 'नवकार मन्त्र का उ-देश देकर मेरे मन को शान्ति प्रदान की । अरिहन्त को नमस्कार करते हुये स्थिर रूप से मैं कायोत्सर्ग के लिये खडा रहा । इसी समय इनके साथी व्यपारियों ने मुझे मार डाला, ओर अरिहन्त के स्मरण के प्रभाव से मैं देव बन गया । अब मैं नन्दीश्वर द्वीप मे आया था। जब मुझे ज्ञात हुआ कि चारुदत्त यहाँ आय हुये हैं। मैं इनके दर्शनों के लिये यहा आ पहुँचा। ____तब विद्याधरों ने कहा कि तुमसे पहले हम इनका सत्कार करेंगे। क्योकि पहले इन्होंने हमारे पिता को जीवन दान दिया था, और फिर तुम्हे धर्मोपदेश । देवने कहा नहीं, पहले मुझे अधिकार है इस प्रकार दोनों ने बड़े प्रेम और आदर के साथ मेरी सेवा की। तत्पश्चात् विद्याधर मुझे शिवमन्दिर नगरी में लेाये, वहां तक देव भी मेरे साथ आया
और बिदा होते समय उसने मुझे कहा कि 'आवश्यकता के समय आप मुझे अवश्य स्मरण कीजिये । मै तत्काल आ पहुँचू गा।' अब में विद्याधरों के धर मे अपने ही घर के समान आनन्द से रहने लगा।
मेरागृहागमन कुछ दिन रहने के पश्चात् मुझे अपनी माता और पत्नी की याद आने लगी। इसलिये मैंन विद्याधरो से कहा कि यद्यपि मुझे यहा सब प्रकार की सुख सुविधाये है किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं। फिर भी अब मुझे अपने घर को याद आ रही है। इस पर वे बोले 'आप जैसा उचित समझे कीजिये । हम आपकी इच्छा में किसी प्रकार की कोई बावा नहीं डालना चाहते, पर हम आप स यह निवेदन करना चाहते है कि हमारी वाहन गन्धबेसना के लिये नैमित्यिकों ने बताया हुआ है कि इसका पति कोई श्रेष्ठ पुरुष होगा। वह इसे सगीत विद्या में पराजित कर इसका वरण करेगा। क्योंकि किसी मनुष्य की हमारे यहा पहुच नहीं हो सकती, इसलिये पिता जी ने कहा कि इसे तुम चारुदत्त के साथ भू लोक में भेज दना। वहा इसका विवाह सरलता पूर्वक सम्पन्न हो जाय ।। अत: आप इसे अपने साथ ले जाइये।
विद्याधरो के कथनानुसार मै उस कन्या को अपने साथ ले अपने