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नन्दीश्वर श्री जिनधाम, बावन पूज करों।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, प्रानन्दभाव घरो॥१॥ ॐ ही मासोत्तमै मासे मासे शुभे शुक्लपदो अष्टाहिकाया हामहोत्सवे नन्दीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिमोत्तरे एका अजनगिरि, बार दधिमुख, पाठ रतिकर, प्रतिदिशि तेरह तेरह इति बावन जिन वैत्यालयेभ्यो जन्म-गरामृत्युविनाशनाय जल निर्वमापीति स्वाहा ॥१॥ भवतपहर शीतल वास, सो चन्दन नाहीं । प्रभु यह गुन कोज सांच, प्रायो तुम ठाहीं ।। नन्दी० ।। ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयन्य-जिन-प्रतिमान्य चन्दनं निर्व० उत्तम अक्षत जिनराज, पुंज घरे सोहै। सब जीते अक्षसमाज, तुम सम अरु को है ।। नन्दो० ॥३॥ ॐ ह्री योनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ जिन-प्रतिमाम्यो अक्षताद निर्व० । तुम काम विनाशक देव, ध्याऊ फूलनसों। लहि शील लक्ष्मी एव, छुई शुलनसो ।। नन्दी० ॥४॥ ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाम्य पुष्पं निवं। नेवज इन्द्रिय-बलकार, सो तुमने चूरा। चरु तुम ढिग सोहै सार, अचरज है पूरा ॥ नन्दी० ॥॥ ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्य नैवेद्य निर्व। दीपक को ज्योति प्रकाश, तुम तन माहि लस । टूटे करमन को राश, ज्ञानकरणी दरसे नन्दी०॥६॥ ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्य दीपं नि०। कृष्णागर धूप सुवास, दशदिशि नारि वर। अति हरषभाव परकाश, मानो नृत्य करै ।। नन्दी० ॥७॥ ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्य धूपं निर्व० ।