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दोहा-सिबरगुरण फो सहि न, ज्यो विलस्त नभ मान ।
'हिराचन्द' तातं जज, फरह सफल माल्यारा ।।२३।।
ही घो मनाहारामाय मानयिनि तार मिला. चिनिये मनमाना नियामीति न्याहा।
(मा निर्णन भी गारना चाहिये) अस्ति-गि जज तिनको नहि प्रावै शापदा ।
पुत्र पौफ धन धान्य लहै सुख सम्पदा ।। इन्द्र नन्द्र पणन्द्र नरेन्द्र जु होयफ। जाय मुक्ति प्रभार फरम सब स्वोयफ ॥२४॥ {ानीय । पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
रामुच्चय चौबीसी पूजा वृषभ प्रजित संभव अभिनन्दन, सुमति पदम सुपाय जिनगय चन्द्र पुहुप शीतल श्रेयान नमि, वासुपूज्य पूजितसुरराय ।। विमल अनन्त धर्मनम उज्ज्वल,शाति-फुयुअर महिलमनाय । मुनिसुव्रत नमि नेमि पाच प्रभु,यर्द्धमान पक्ष पुष्प चढाय ।।
ही श्री वृपभादि-महावीगत चतुर्विशति-जिन-मगृह 1 प्रभ अवतर अवनर, गंवोपट पाहाननम् । अन तिष्ठ तिप्ठ स्थापनम् । प्रम मम सन्निहितो भर मय वपद, सनिधिकरणम् । मुनिमन सम उज्ज्वल नीर, प्रासुफ गघ भरा।
भरि फनफ फटोरी धीर वोनी धार धरा ।। चौबीसों प्रीजिनचन्द, आनन्दकन्द मही ।
पद जजत हरत भवफद, पावर मोक्षमही ।।२।।