________________
दोहा अविचल ज्ञान-प्रकारात, गुण ग्रनन्त की खान । ध्यान धरै सो पाइये, परम सिद्ध भगवान ॥
___ इत्यागीर्वाद पुप्पाजलि ।
सिद्ध पूजा का भावाष्टक निज-मनो-मरिण-भाजन-भाग्या, शम-रसंक-सुधा-रस-घारया । सकल-बोध-कला-रमरणीयक, महज-सिद्धमहं परिपूजये । सहज-कर्म-फलक-विनाशनरमल-भाव-सुवासित-चन्दन । अनुपमान-गुरगादलि-नायक, सहज-सिद्धमह परिपूजये ।। सहज-भाव-निर्मल-तन्दुले , सकल-दोष-विशाल-विशोधनः । अनुपरोघ-सुबोध-निधानकं, सहज-सिद्धमहं परिपूजये ।। समयसार-सुपुष्प-तुमालया, सहज-कनकरेण विशोषया । परम-योग-वलेन-वशीकृत सहज-म्खिमह परिपूजये ।। अकृत-बोध सुदिव्य-निवेद्यकविहित-जन्म-जरा-मरणातक. । निरवधि-प्रचुरात्म-गुरणालय, सहज-मिद्धमहं परिपूजये ।। सहज-रत्न-रुचि-प्रतिदोपका, रुचि-विभूति-तमः प्रविनाशने । निरवधि-स्वविकाम-विज्ञामनं, सहज-सिद्धमह परिपूजये ।। निज गुणाक्षय-रूप-मुधूपन , स्वगुण घाति-मल-प्रदिनाशनः । विशद-बोध-सुदीर्घ-सुखात्मकं, सहज-सिद्धमह परिपूजये ।। परम-भाव-फलावलि-सम्पदा, सहज-भाव-कुभाव-विशोधया। निज-गुरण-स्फुरणात्म-निरजर्न, सहज-सिद्धमह परिपूजये ।।
नेत्रोन्मीलि-विकास-भाव-निवहैरत्यन्त-बोधाय वै । वागंधाक्षत-पुष्प-दाम-चरुक सद्दीप चूप. फलं.।।