________________
( २०७) बारह मासा राजुलजी का
राग मरहठी (झडी) में लूगी श्री श्ररहन्त, सिद्ध भगवन्त, साधु सिद्धान्त, चार का शरना, निर्नेन नेम विन हमे जगत क्या करना ।टेर।।
प्रापाठ मास (झडी सखि पाया श्रापाढ घनघोर, मोर चहु मोर, मचा रहे शौर, इन्हें समझानो। मेरे प्रोतम की तुम पवन परीक्षा लामो । हैं कहा वसे भरतार, कहा गिरनार, महायत घार, बसे किस वन मे, क्यो वाघ मोड दिया तोड क्या सोची मन मे ।। झवटे-जा जा रे परैया जा रे, प्रीतम को दे समझारे। रही नौभव सङ्ग तुम्हारे, क्यो छोड दई मझधारे ॥
(झडी) क्यो विना दोप भये रोप नही सन्तोप,यही अफसोस बात नहिं बूझी। दिये जादो छप्पन कोड छोड क्या सूझी। मोहि राखो शरण मझार, मेरे भर्तार,करो उद्धार, क्यो दे गये झरना । निर्नेन नेम विन हमे जगत क्या करना ।
श्रावण मास (झडी) सखि श्रावण सवर करे, समन्दर भरे,दिगम्बर घरे, सखी क्या करिये । मेरे जी मे ऐसी पावे महावत धरिये। सब तजू साज शृङ्गार तजू ससार क्यो भव मझार में जो भरमाऊँ । क्यो पराधीन तिरिया का जन्म फिर पाऊं।। झवटें-सब सुनलो राज दुलारी दुख पड गया हम पर भारी।
तुम तज दो प्रीति हमारी, करलो सयम की तय्यारी ।।