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दोहा - तस्वारथ यह सूत्र है, मोक्ष शास्त्र को मूल । अध्याय तुर्य पूरण भयो, मिथ्यामत की शूल ॥२६॥ ॥ इति चतुर्थोऽध्याय ॥ छन्द विजया
१ काय प्रजीवके धर्म प्रधर्म प्रकाश रु पुद्गल भेद बखानो । २जीवसु ३द्रव्य मिलाय दिये पंचास्तिसु कायको भेद जतानो । ४ नित्यसु सास्वत जान इन्हे श्ररु मान रूपी५पुद्गल रूपी । ६ धर्म प्रधर्म प्रकाश ये तीनो७हित क्रिया इक क्षेत्र निरूपी १। चोपई
८ धर्म धर्म असंख्य प्रदेश, यही जीव के जान प्रदेश । अनन्त प्रदेश प्रकाश स्वतन्त्र १० पुद्गल सख्य असंख्य प्रनन्त ११ फेरि भाग जाको नहि होय, नाम प्रदेश बतायो सोय । १२ लोक प्रकाश विषै है वास, द्रव्यनको जानो सुखराश । ३ । १३ धर्म धर्म द्रव्य परदेस, व्यापत लोकालोक भनेश । १४ लोकालोक प्रदेश मांय, पुद्गल द्रव्य प्रदेश बसाय |४| १५ तासु असंख्य भाग मे जान, जीवन को अवगाह प्रमान । १६ जियप्रदेश संकुच विस्तार, दीपक तुल्य जान निरधार १५ १७ पुद्गल जीव चाल सहकार, धर्मद्रव्य जानो उपकार । तिनको इस्थित करें सु जान, द्रव्य श्रधर्म स्वभाव बखान | ६ |
१८ गुरणप्रकाश श्रवगाहन वीर, १६पुद्गल जोग सुनो नमधीर मन वच स्वास उस्वास शरीर, २० सुखदुख जीवनमरन श्रधीर७ २१ जिय उपकार परस्पर जीव, २२काल सु लक्षरण जान सदीव वर्तमान परिनमन सु जान, क्रिया परत्व श्रपरत्व बखान 15