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( १६६ ) कुमति कुश्रुति कुअवधि लखि क्रम-क्रम ही पहिचान ।१४ ३२. सत असत्य निर्णय बिना इच्छाकर उनमत्त ।
प्रहरण करे जो ज्ञान को सोई विषय अनित्त ॥१५॥ ३३. सात भेद नयके कहे नैगम संग्रह जान ।
तीजी नय व्यवहार है द्रव्याथिक त्रय मान ॥१६॥ चोयी नय ऋजुसूत्र है शब्द पांचमी वीर । समभिरुढ एवंभूत नय छटी सातमी धीर ॥१७॥ पर्जय अथिक चार नय पिछिली कही सु जान । प्रथम तीन नय जो कही सो द्रव्याधिक जान ॥१८॥ ज्ञान रु दर्शन तत्त्व नय लक्षरण भेद प्रमारण । इन सबको बरणन कियो पहिलो प्रध्या जान ॥१६॥
। इति प्रथमोध्याय ॥
छन्द विजया १. उपशम क्षायिक मिश्र सुभावसु जीवको भाव स्वरूप बखानो। उदयिक अरु परिनामिक जानसु नीचे लिखे प्रति मेदसु जानो। २. बो विधि उपशम क्षायिक नौ विध मिश्र अठारह भेद बताए। उदयिक भाव लखो इकबोस परिनामिक त्रय भेद सु गाए ॥१॥ ३. उपशम सम्पकचारित दो अरु ४ दर्शन ज्ञान रु दान बखानो। लाभ भोग उपभोग लखौ इम वीर्यको योग करों नौ जानो। ५. ज्ञानसु चार प्रज्ञानहु तीनरु दर्शन तीन रु लब्धिके पांचौं । संयमासंयम चारित सम्यक् तीन मिलाय अठारह हु सांचौ ॥२ ६. चारि कषाय कही गति चारि रु लिंगसु तीन सयोग करो है।