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सामायिक पाठ (भाषा)
( श्री स्व० रामचन्द्र उपाध्याय कृत ) नित देव ! मेरी प्रात्मा धारण करे इस नेम को,
मैत्री करे सब प्राणियों से, गुणिजनों से प्रेम को। उन पर दया करती रहे, जो दुःख-ग्राह-ग्रहीत है,
उनसे उदासीसी रहे जो धर्म के विपरीत हैं ॥१॥ करके कृपा कुछ शक्ति ऐसी दीजिये मुझमे प्रभो,
तलवारको ज्यों म्यान से करते विलग हैं हे विभो। गतदोष प्रात्मा शक्तिशाली है मिली मम अङ्ग से,
उसको विलग उस भांति करने के लिए ऋजु ढङ्गसे।२। है नाथ ! मेरे चित्तमे समता सदा भरपूर हो,
सम्पूण भमताकी कुमति मेरे हृदय से दूर हो। बनमें भवन मे, दुख मे सुखमे नहीं कुछ भेद हो,
अरि-मित्रमे मिलने-बिछुडने मे न हर्ष न खेव हो ।३। अतिशय घनी तम-राशिको दीपक हटाते हैं यथा,
दोनो कमल-पद प्रापके अज्ञान-तम हरते तथा । प्रतिबिम्बसम स्थिररूप वे मेरे हृदय में लीन हो,
मुनिनाथ ! कीलित तुल्य वे उर पर सदा प्रासीन हों।४ यदि एक-इन्द्रिय पावि देही घूमते फिरते मही,
___जिनदेव ! मेरी भूलसे पीड़ित हुए होवे कहीं। टुकडे हुए हो, मल गये हो, चोट खाये हो कभी,