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( ३४ ) यो समाधि उरमाही लावो, अपनो हित जो चाहो । लज ममता अरु पाठो मदको, ज्योतिस्वरूपी ध्यावो। जो कोई नित करत पयानो, ग्रामान्तर के काजै । सो भी शकुन विचारै नोके, शुभ के कारण साजै ॥५०॥ मातादिक अरु सर्व कुटुम्ब सौ, नोको शकुन बनावे । हल्दी धनिया पुगी अक्षत, दूब दही फल लावै ॥ एक ग्राम के कारण एते, करै शुभाशुभ सारे । जब परगतिको करत पयानो, तउ नहिं सोच प्यारे ॥५१॥ सर्व कुटुम्ब जब रोवन लागे, तोही रुलावे सारे । ये अपशकुन करै सुन तोको, तू यो क्यो न विचारे । अब परगति की चालत बिरिया, धर्मध्यान उर प्रानो। चारो पाराधन प्राराधों, मोहतनो दुख हानो ॥५२॥ ह नि.शल्य तजो सब दुविधा, मातमराम सुध्यावो । जब परगति को करहु पयानो, परम तत्त्व उर लावो। मोह जालको काट पियारे, अपनो रूप विचारो।। मृत्यु मित्र उपकारी तेरी, यों उर निश्चय धारो । ५३॥ दोहा-मृत्युमहोत्सव पाठको, पढो सुनो बुधिवान ।
सरधा घर नित सुख लहो, सूरचन्द शिवथान । पञ्च उभय चव एक नभ, सनते तो सुखदयाय । पाश्विन श्यामा सप्तमी, कह्यो पाठ मनलाय ॥