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२१ चौथी प्रारती बी उवज्झाया,
दर्शन करता पाप पलाया ॥ यह० ।। पाचवीं पारतो साधु तुम्हारी,
कुमति विनाशन शिव अधिकारी यह। छट्टी ग्यारह प्रतिमा धारी,
श्रावक बन्दी प्रानन्दकारी ।। यह० ।। सातवीं पारतो श्रीजिनवाणी,
"द्यानत" स्वर्ग मुक्ति सुखवानी ।।यह० ।
भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण । पारस प्यारा, मेटो मेटो जी, सकट हमारा टेर।। निशदिन तुमको जपू, पर से नेहा तजू । जीवन सारा, तेरे चरणो मे बीते हमारा ॥ अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्रारण प्यारे । सबसे नेहातोड़ा, जगसे, मुह को मोड़ा, सयम धारा १मैंटो। इन्द्र और धरगोन्द्र भी आये, देवी पद्मावती मंगल गाये। पाशा पूरो सदा, दुख नही पावे कदा, सेवक थारा ।।मेटो.। जग के दुःख की तो परवाह नहीं है,स्वर्ग सुखकी भी चाह नहीं है मेटो जामन-मरण, होवे ऐसा यतन, पारस प्यारा ।।मेटो। लाखों वार तुम्हे शीश नवाऊ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊ ।। 'पंकज' याकुल भया, दर्शन दिन ये जिया, लागे खारा ।हामे.
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