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देव-शास्त्र-गुरु की भाषा-पूजा
[कवि द्यानतराय कृत । (अडिल्ल छन्द)-प्रथम देव अरिहन्त सुश्रुत सिद्धान्तजू ।
गुरु निर्ग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पथजू ।।
तीन रतन जग माहि सो ये भवि ध्याइये। ___. .. तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये ॥१॥ दोहा-पूजौं पद अरिहन्त के, पूर्जी गुरुपद सार ।
. पूजौं देवी सरस्वती, नित प्रति प्रष्ट प्रकार ।। ॐ ह्री देव-शास्त्र-गुरु समूह । अत्र अवतर अवतर सवौषट् आह्वानम् । ॐ ह्री देवशास्त्र गुरु समूह । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् । ॐ ह्री देवशास्त्र गुरु समूह । अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् ।
॥ गीता छन्द ।। सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, वन्दनीक सुपदप्रभा । अति शोभनीक सुवर्ण उज्ज्वल, देखि छवि मोहित सभा ।। वर नोर क्षीरसमुद्र घट भरि, अग्न तसु बहुविधि नचूं। अरिहत श्रुत सिद्धान्त गुरु, निम्रन्थ नित पूजा रचूं। .. दोहा-मलिन वस्तु हर लेत सब, जल स्वभाव मल छीन ।
जासों पूर्जी परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥१॥ ॐ ह्री देव-शास्त्र गुरुभ्यो जन्म जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्व० । जे त्रिजग उदरं मंझार प्रारणी, तपत अति दुद्धर खरे । तिन अहितहरन सुवचन जिनके, परम शीतलता भरे ।। तसु भ्रमर लोभित प्राण पावन, सरस चदन घसि सच्। मरिहत श्रुत सिद्धान्त गुरु निम्रन्थ 'नित 'पूजा रचू।।