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१९६ ) हरिचन्दन अगर कपूर, चूर सुगन्ध करा । तुम पदतर खेवत भूरि, पाठो कर्म जरा ॥श्रीवीर०॥ ॐ ह्री श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि०। ऋतुफल कलवजित लाय, कञ्चन थार भरो। शिवफल हित हे जिनराय, तुम ढिग भेंट धरो॥श्रीवीर०॥ ॐ ह्री श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० । जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरो। गुणगाऊँ भवदधि पार, पूजत पाप हरो |श्रीवीर०।। ॐ ह्री श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अन_पदप्राप्तये अयं नि० ।
पंचकल्याणक । मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी । मोहि । गरभ षाढ सित छट्ट लियो तिथि, त्रिशलाउर अघहरना ॥ सुर सुरपति तित सेवकरी नित, मैं पूजो भवतरना ॥मोहि.।। ॐ ह्रीआषाढशुक्लाषष्ठ्या गर्भावतरणमगलप्राप्ताय श्रीमहावीरायाध्यं० जनम चैत सित तेरसके दिन, कुण्डलपुर कनवरना। सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो मै पूजो भवहरना ।मोहि०।। ॐ ह्री चैत्रशुक्लात्रयोदश्या जन्ममगलप्राप्ताय श्रीमहावीरायाऽध्यं । मंगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना। नृपकुमार घर पारण कीनो, मै पूजो तम चरना । मोहि०॥ ॐह्री मार्गशीर्षकृष्णादशम्या तपोमगलमडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्रायाध्य शुकल दशै वैशाख दिवस अरि, घाति चतुक क्षय करना। केवल लहि भवि भवसर तारे, जलो चरन सखभरना मोहि०॥
___ॐही वैशाखशुक्लादशम्या ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।