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राज काज पटखण्ड महीपति, सब दल ले चढि पाये प्राप । बाहुबली भी सम्मख पाये, मन्त्रिन तीन युद्ध दिये थाप ।। दृष्टि, नीर अरु मल्ल युद्ध मे, दोनो नप कीनो बल धाप । वृषा हानि रुक जाय सैन्य की, यात लडिये आपो-पाप ॥ भरत भुजवली भूपति भाई, उतरे समर भूमि मे प्राय। दृष्टि नीर रण थके चक्रपति, मल्लयुद्ध तव करो अघाय ।। पगतल चलत चलत अचला तव, कम्पत अचल शिखर ठहराय । निवघ नीर अचला घर मानो, भये चलाचल क्रोध वसाय ॥ भुज विक्रम वल वाहवली ने, लये चस्पति अपर उठाय । चक्र चलायो चक्रपती तत्र, तो भी विफल भयो तिहि ठाय ॥ अति प्रचण्ड भुजदण्ड सुण्ड सम, नृप सार्दूल वाहुबलि राय । सिंहासन मंगवाय जा समै, अग्रज को दीनो पघराय ।। राजरमा रामा सर घन में, जोवन दमक दामिनी जान। भोग भुजङ्ग जङ्गसम जय को, जान त्याग कीनो तिहि थान ।। अप्टापद पर वीर नपति वर, वीर व्रत घर कीनो ध्यान । अचल अङ्ग निरभङ्ग अङ्ग तज, सम्वतसरलों एक स्थान ।। विपघर वम्बी करी चरणतल, ऊपर वेलि चढी अनिवार । युग जहा कटि वाह वेढिकर, पहँची वक्षस्थल पर सार ।। सिर के केश वढे जिम माही, नभचर पक्षी बसे अपार । धन्य धन्य इम अचल ध्यान को, महिमा सुर गावै उरधार ।। कर्म नाशि शिव जाय वसे प्रभु, ऋपभेश्वर से पहिले जान । अप्ट गुणाङ्कित मिद्ध शिरोमणि, जगदीश्वर पद लयो प्रमान ।। वीरव्रती वीराग्रगण्य प्रभु, वाहुवली जग धन्य महान । वीरव्रती के काज जिनेवा, नमे सदा जिन विम्ब प्रमाण || दोहा-श्रवण वेलगुल विध्यगिरि, जिनवर बिम्ब प्रधान ।
छप्पन फुट उत्तङ्ग तन, खड्गासन अमलान ॥१॥