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[ १७१ पुत्र पौत्र हरि कृष्ण प्रचुर मुनि, पंचमगति तह पाई ।
तास तनी महिमा को वरण, श्रवण सुनत हरषाई ॥१॥ (पद्धडि) जै जै जै नेमि जिनन्दचन्द्र, सुरनर विद्याधर नमत इन्द्र । जै सोरठ देश अनेक थान, जूनागढ पै शोभित महान ॥ २॥ तहा उग्रसेन नृप राजद्वार, तोरण मण्डप शुभ वने सार । जे समुदविजय सुत व्याह काज, आये हर वलि जत प्रान साज । तह जीव बन्धे लख दया धार, रथ फेर जन्तु बन्धन निवार । द्वादस भावन चिन्तवन कीन, भूषण वस्त्रादिक त्याग दीन ॥ ४ ॥ तज परिग्रह परिणय सर्व सग, ह्व अनागार विजयी अनग । घर पञ्च महाव्रत तप मुनीश निज ध्यान धरो हो केवलीश ॥५॥ इसहो सुथान निर्वाण थाय, सो तीरथ पावन जगत माय । अरु शंबु श्रादि प्रद्य म्न कुमार, अनिरुद्ध लह्यो पद मुक्ति पार ॥६॥ पुनि राजुलहू परिवार छाड, मन वचन कायकर जोग माड । तप तप्यो जाय तिय धीर वीर, सन्यास घार तजके शरीर ॥७॥ तिय लिंग छेद सुर भयो जाय, आगामी भवमे मुक्ति पाय । तह अमरगण उर धर अनन्द, नित प्रति पूजत हैं श्रीजिनन्द ॥८॥ अरु निरतत मधवा युक्तनार, देवनकी देवी भक्ति धार । ता थेई २ थेई २ करत जाय, फिर फिरि फिर फिरकी लहाय ।।९।। मुहचग बजावत तारवीन, तनन तनन तन अति प्रवीन । करताल ताल मिरदग और, झालर घण्टादिक अमित शोर ॥१०॥ प्रावत श्रावकजन सर्व ठाम, बहु देश देश पुरनगर ग्राम । हिलमिल सब संघ समाज जोर, हय गय वाहन चढ रथ बहोर ॥१२॥ यात्रा उत्सव निशिदिन कराय, नर नारिउ पावत पुण्य प्राय। , को वरनत तिस महिमा अनूप, निश्चय सुर शिवकै होय भूप ॥१२॥ पत्ता-श्री नेमिजिनन्दा आनन्दकन्दा, पूजत सुरनर हितकारी।
तिस नमत 'जवाहर' जुगकर शिर घर हर्षधार गढ गिरनारी ॥ ॐ ह्री श्री गिरनार सिद्धक्षत्र से नेमिनाथ शबु प्रद्य म्न अनिरुद्ध और बहत्तर कोटि सातसो मुनि मोक्षपद प्राप्तये महायं निर्वपा०