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भत्रु मित्रता को घरे, विष निरविषता याय 11 It चनी सगर इन्द्रपन, मिनं प्रापर्ने प्राए । अनुक्रम कर मिश्पद लह, नेम सनन हनि पाप ॥१०॥ तुन दिन में व्याकुल नरो, जो इन दिन मीन । जन्म रा मेरी हरो, करो गेहि स्वाधीन ॥१॥ पतित बहुत पावन न्येि, गिन्ती कौन करेव । अंजन ने तारे प्रदू, जर जय जय जिनन ॥१२॥ थनी नाव नरि मि, तुम उनु पार करे। देवड़िया नुन हो प्रभू, जय जय जय जिनदेव ॥१॥ राम सहित जग में नल्यो, निले नरागी देव । वीतराग नेन्गे अर, नेटो सग कुव ॥१४॥ स्ति निगोर ति नासो, रित तिच प्रजान । प्राज वन्य मानुष भयो पायो जिनवर पान ॥१५॥ तुनको पूरे सुरपती, प्रपिति नरपति देव । उन्य भाग मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव ॥१॥ अगरण के नुन गरण हो, निरागर प्राचार । नै त भत्रि में, बेर लगानो पार ॥१४ इन्द्रादिन गणपति थने, कर हिननी भगवान । अरनो विन्द निहान्ने, को श्राप समान ॥१८॥ मर्ग क मुटिन जग उनन है पर ।
हा यो कान हूँ के निहार निझार ॥१६॥ सो रहा और हों, तो न दि ग्वार ।