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प्रभु के दर्शन लख कटत पाप,सुखशांति मिलत तुम नाम जाप । सब भूत प्रेत भयभीत होय, डरकर भागत हैं नमत तोय ।। पर दुल अनेक नाते पलाय, जो भाव सहित प्रभुको जुध्याय। उनके सकट रहते न कोय, बिन भाव किया नहिं सफन होय । सब अरज सुनो मेरी कृपाल, मैं भव दुख दुखिया है क्याल । मत देर करो सुनिये पुकार, दु० प्रष्ट करम मेरे निवार । पत्ता-श्रीचन्द्र जिनेशं दुख हर लेतं, लब सुख देतं मनहारी।
गाऊँ गुणमाला जगउजियाला, सोतिविशाला सुखकारी। ॐ ह्री देहेरे के श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय महायं निर्वपामोति स्वाहा । दोहा-देहरे के धीचन्द्र को, मन वच तन जो ध्याय । ऋद्धि-वृद्धि होवे 'तुमति', सकट जाय पलाय ॥
।' इत्याशीर्वाद ॥ सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखर पूजा दोहा-सिद्ध क्षेत्र तीरथ परम, है उत्कृष्ट स्थान ।
शिखर समेद सदा नौं, होय पाप की हान ॥१॥ अगिनित मुनि जहं ते गये, लोक शिखर के तीर ।
तिनके पद पङ्कज नमौं, नाशै भवकी पीर ॥२॥ अडिल्ल छन्द-है वह उज्ज्वल क्षेत्र सु अति निर्मल सही।
परम पुनीत सूऔर महा गुनकी मही॥ सफल सिद्ध दातार महा रमनीक है।
बंदों निज सुख हेत अचल पद देत है ॥३॥ सोरा-शिखर सम्मेद महान, जगमे तीर्थ प्रधान है।
महिमा अद्भुत जान, अल्पमती मैं किम कदा ॥४॥