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कलि पौष एकादशि आई, जन्मे थे त्रिभुवन राई। सुर चन्द्रपुरी मिल पाये, अभिषेक सुमेर कराये ।।
ॐ ह्री देहरे के श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पोप कृष्णा एकादशी को जन्ममंगलमण्डिताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु भवतन भोग अपारा, निस्सार जान जग सारा । बदि पौष एकादशि प्यारी, बनमे जा दीक्षा धारी ।।
ॐ ह्री देहरे के श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पोपकृष्णा एकादशी को तपोमडलमण्डिताय अयं निर्वपामोति स्वाहा।।
चहँ कर्म घातिया नाशा, शुभ केवलज्ञान प्रकाशा। फाल्गुण शुभ सप्तम कारी, बना समोसरण मनहारी॥
ॐ ह्री देहरे के श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय फाल्गुण वदी सप्तमी को केवलज्ञान प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सम्मेद शैल प्रभु नामी, है ललित कूट अभिरामी । फाल्गुरण सुदि सप्तमि चूरे, शिव नारि वरी विधि फरे।
ॐ ह्री देहरे के श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय फाल्गुण सुदी सप्तमी को मोक्षमंडलमण्डिताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
॥जयमाला ॥ दोहा-चन्द्र वदन लक्षरण विमल, निष्कलक निष्काम ।
ऐसे श्री जिन चन्द्र को, वन्दौं पाठो याम ।। शान्ति मूर्ति लख पापकी, कटे अनन्ते पाप । रोग शोक दारिद्र दुख, नशत आप से प्राप ।।
॥ पद्धरि छन्द ।। जय चन्द्रनाथ धुति अमल चंद, जय इन्द्रचंद्र वंदित सुचर्ण । जय चन्द्रपुरी में जन्मलीन, महासेन नृपति गृह शोभ कीन ।।