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श्रम स्वेद मल निरवार जिन त्रय धार दे पायर्यान परौ ॥४॥
ॐ ह्री श्रीमत भगवन्त सकलकर्मक्षयार्थ अद्य जलेनाभिषिच्ये । अति मधुर जिनधुनि सम सुप्रीणित प्राणिवर्ग सुभावसो। बुधचित्तसम हरिचित्त नित्त, समिष्ट इष्ट उछावसो॥ तत्काल इक्षुसमुत्थ प्रासुफ रतनकुम्भ विष भरौं । श्रम त्रास ताप विचार जिन त्रय धार देपायनि परौं ।।५।। ___ॐ ह्री श्रीमत भगवन्त सकलकर्मक्षयार्थ अद्य इसरसेन भिषिच्ये । निस्तप्त-क्षिप्त-सुवर्ण-मद-दमनीय ज्यों विधि जैनको। प्रायुप्रदा बलबुद्धिदा, रक्षा सु यो जिय-सैनको । तत्काल मंथित क्षीर उत्थित, प्राज्य मणिभारी भरौं । दीजै अतुलबल मोहि जिन, त्रय धार दे पायनि परौं ॥६।।
ॐ ह्री श्रीमत भगवन्त सकलकर्मक्षयार्थ अद्य घृतेनाभिषिच्ये । शरदभ्र शुभ्र सुहाटका ति सुरभि पावन सोहनो। क्लीवत्वहर बल धरन पूरन, पय सकल मनमोहनो। कृतउष्ण गोथनतै समाहृत मरिणजटितघट मे भरौं । दुर्बल दशा मो मेट जिन त्रय धार दे पायनि परों ॥७॥ ___ॐ ह्री श्रीमत भगवन्त सकलकर्मक्षयार्थ अद्य दुग्धेनाभिषिच्ये । वर विशद जैनाचार्य ज्यो लघुरामलकर्कशता धरै। शुचिकर रसिक मथन विमंथित नेह दोनो अनुसरै ।। गोदधि सुमरिणमृङ्गार पूरन लायकर आगे घरौं । दुखदोष कोष निवार जिन त्रय धार दे पायनि परौं ॥८॥
ॐ ह्री श्रीमत भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थ अद्य दध्नाभिषिच्ये ।