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मजरा ॥
१२८ ] ____ॐह्री यीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र । अत्र मम सनिहितो भव भव वषट् ।
अष्टक चाल-द्यानतरायकृत नन्दीश्वरअष्टककी, अष्टपदी तथा होली आदिमे । गगाह्रदनिरमलनीर, हाटकभृङ्गभरा।
तुम चरण जजो वरवीर, मेटो जनमजरा ।। धीचंदनाथदुति चंद, चारजन चद लगे।
मनवचतन जजत अमद आतम जोति जगे ॥१॥ ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनागनाय जलं नि । श्रीखण्डकपूर सुचंग, लेशर रग भरी। घसि प्रासुकजलके सग, भवाताप हरी ।। श्रीचंद. ॥२॥ ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चदनं नि० स्वाहा । तदुल रित सोम समान, सम ले अनियारे । दिय पुञ्ज मनोहर पान, तुमपदतर प्यारे ॥श्रीचद.॥३॥ ॐ ह्री श्रीचद्रप्रमजिनेन्द्राय प्रक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० स्वाहा। सुरद्रुमके सुमन सुरग, गधित अलि पावै । तामो पद पूजत चंग, कामविथा जावै ।।श्रीचंद.।।४।। ॐ ह्री श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंशनाय पुष्प नि० स्वाहा । नेवज नानापरकार, इन्द्रिय वलकारी । सो ले पद पूनों सार, प्राकुलताहारी ॥श्रीचंद.॥५॥ ॐ ह्री श्रीचदप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि० स्वाहा । तमभंजन दीप सँवार, तुम ढिग धारतु हो। मम तिमिरमोह निरवार, यह गुण धारतु हो ॥धीचंद.।।६।। ॐ ही श्रीचंद्रप्रमजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा ।