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श्री वासुपूज्य मलि नेम, पारस वीर श्रति । नमु मन वच तन धरि प्रेम, पाँचो वालयती ॥
ॐ ह्री श्री वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, श्री पञ्च बालयती तीर्थंकरेन्य नम जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ।
चन्दन केशर करपूर, जल मे घनि आनो ।
भव तपभजन सुखपूर, तुमको मैं जानो । श्रीवासु ॥ चन्दन ॥ दर प्रक्षत विमल बनाय, सुवरण याल भरे ।
वह देश देश के लाय, तुमरो भेट घरे || श्रीवासु ॥ अक्षत ॥
यह काम भट प्रति सूर, मनमे क्षोभ करो ।
मै लायो सुमन हजुर, याको वेग हरो ||श्रीवासु । पुष्प || पस पूरित नवेद्य, रसना सुखकारी ।
द्वय करम वेदनी छेद, श्रानन्द भारी ||श्रीवासु ॥ नैवेद्य ॥ घरि दीपक जगमग ज्योति, तुम चरणन जागे ।
म्म मोह तिमिर क्षय होत, आतम गुरण जागे ॥ श्रीवासु । दीप ||
ले दशविधि धूप अनूप, खेॐ गन्ध मयी ।
दशबन्ध दहन जिन भूप, तुमही कर्म जयी ।। श्रीवासु ॥ धूपं ॥ पिस्ता अरु दाख बदाम, श्रीफल खेय घने ।
तुम चररण जजू गुरणषाम, द्यो सुख मोक्ष तने ॥ श्रीवासु । फलं ॥ सजि वसुविधि द्रव्य मनोज्ञ, अर्घ बनावत है | वसुकर्म अनादि संयोग, ताहि नशादत हैं । श्रीवासु । अर्घ्यं ॥