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ॐ ह्री पाँच भरत पाँच ऐरावत क्षेत्र संबंधी तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्य नम फल नि० ।
द्रव्य आठो जु लीना है, श्रर्घ कर में पूजते पाप छीना है, 'भानमल' जोड
नवीना है । कोना है || द्वीप० ॥
ॐ ह्री पाँच भरत पाँच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी तीस चौबीसी के सात सौ वीस जिनेन्द्रेभ्य' नम अघ्यं निर्व० ।
प्रत्येक अर्ध ।
जम्बूद्वीप की प्रथममेरुकी, दक्षिणदिशा भरत शुभ जान । तहाँ चौबीसी तीन विराजे प्रगत नागत नौ वर्तमान ॥ तिनके चररणकमलको निशदिन, अर्धचढ़ाय करूँ उर ध्यान । इस ससार भ्रमरणते तारो, श्रहो ! जिनेश्वर करुणावान ||
ॐ ह्री सुदर्शन मेरु की दक्षिण दिशि भरत क्षेत्र सम्बन्धी तीन चोवीसी के बहत्तर जिनेन्द्रेभ्य नम अघ्यं निर्व० । सुदर्शनमेरु की उत्तर दिशमे, ऐरावत क्षेत्र शुभ जान । श्रागत नागत वर्तमान जिन, बहतर सदा सास्वते जान || तिनके चरणकमलको निशदिन, श्रर्घचढ़ाय करूँ उर ध्यान । हम ससार भ्रमरणते तारो, ग्रहो जिनेश्वर ! करुणावान || ॐ ह्री सुदर्शन मेरु की उत्तर दिशि ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी तीन चौबीसी के वहत्तर जिनेन्द्रेभ्य नम. अर्घ्यं निर्व ० खण्ड घातकी विजय मेरुके, दक्षिण दिशा भरत शुभ जान । तहाँ चौबीसी तीन विराजे, श्रागत नागन श्ररु वर्तमान || तिनके चरणकमलको निशदिन, प्रघचढ़ाय करू उर ध्यान । इस ससार भ्रमरणते तारो, श्रहो जिनेश्वर ! करुणावान ||