________________
[ १०५ या पूजा परभाव मिटे, भव भ्रमण निरन्तर । यात निश्चय मान करो नित भाव भक्ति घर ।। इत्याशीर्वाद । पुष्पाजलि क्षिपेत् ।
सम्वत् भू ग्रह माहिं जो, सावन सार प्रसेत । पहर रात बाकी रही, पूर्ण करी सुख हेन । इति
श्रीतीस चौबीसीजी की
पूजा
पाँच भरत शुभ क्षेत्र पाँच ऐरावते,
श्रागत-नागत वर्तमान जिन सास्वते ।
सो चौबीसी तीस जजू" मन लायके,
श्राह्नानन विधि करू बार त्रय गायके ||
ॐ ह्री पंचमेरूसम्बन्धि - पंचभरत - पंचऐरावत क्षेत्रस्थ भूतानागतवर्तमान-सम्वन्धिसप्तशतविंशतितीर्थङ्करा
अत्र अवतरत अवतरत
पट् इति श्राह्वाननं । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठठ स्थापन । अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वपट् सन्निधिकरणम् ।
नीर दधि क्षीर हम ल्यायो, कनक को भृङ्ग भरवायो । श्रबे तुम चरण ढिग आयो, जन्म-मृत्यु रोग नशवायो || द्वीप प्रढाई सरस राजे, क्षेत्र दस ता विषै छाजे । सात शत बोस जिनराजे, पूजताँ पाप सब भाजे ||१||
ॐ ह्री पचभरत पंचऐरावत क्षेत्रस्थ भूतानागत- वर्तमानकाल सम्बन्धी तीस चौबीसी के सातसौवीस तीर्थंकरेभ्य नमं जलं निर्व० |
सुरभिजुत चन्दन ल्यायो, सग करपूर घसवायो ।
धार तुम चरण ढरवायो, भव- श्राताप नशवायो ॥ द्वीप० ॥