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मै दुःख सहे संसार ईश, तुमते छानी नाहीं जगोश । जे इहविधि मौखिक स्तुति उचार, तिन नशत शीघ्र संसारभार इहविधि जो जन पूजन कराय, ऋषिमंडल यत्र सू चित्तलाय । जे ऋषि मंडल पूजा करन्त, ते रोग शोक संकट हरन्त ॥ जे राजा रन कुल वृद्धि जान, जल दुगं सु गज केहरि बखान । जे विपतिघोर श्ररु कहि मसान, भय दूर करे यह सर्कल जान ॥ जे राजभ्रष्ट ते राज पाय, पद भ्रष्ट थकी पद शुद्ध थाय ।
धन अर्थी धन पावे महान, यामे संशय कछु नाहि जान भार्या अर्थी भार्या लहन्त, सुत अर्थी सुत पावे तुरन्त । जे रूपा सोना ताम्रपत्र, लिख तापर यन्त्र महा पवित्र || ता पूजे भागे सकल रोग, जे वात पित्त ज्वर नाशि शोग । तिन गृहतं भूत पिशाच जान, ते भाग जाहि संशय न श्रान ॥ जे ऋषि मंडल पूजा करन्त, ते सुख पावत कहि लहे न अन्त । जब ऐसो मैं मन माहिं जान, तब भाव सहित पूजा सुठान ॥ वसुविधिसे सुन्दर द्रव्य ल्याय, जिनराज चरण आगे चढ़ाय । फिर करत भारती शुद्धभाव, जिनराज सभी लख हर्ष श्राव ॥ तुम देवन के हो देव देव, इक प्ररज चित्त में धारि लेव । जे दीनदयाल दया कराय, जो मै दुखिया इह जग भ्रमाय ॥ जे इस भव वन मे वास लीन, जे काल श्रनादि गमाय दीन । मैं भ्रमत चतुर्गति विपिन माहि, दुख सहै सुक्ख को लेश नाहि ।। ये कर्म महारिपु जोर कीन, जे मनमाने ते दुःख दीन । को नहि डर धराय, इनते भयभीत भयो अघाय ॥
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