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दो शब्द
यह निबन्ध " जैन समाज क्यों मिट रहा है" शीर्षक से "अनेकान्त" के द्वितीय वर्षकी १, २, ३, किरणों में क्रमशः प्रकाशित हो चुका है । नाम परिवर्तन और कुछ संशोधन करके अब यह पुस्तकाकार छपा है ।
- लेखक
धन्यवाद
यह पुस्तक श्रीमान् लाला तनसुखरायजी जैन (मैनेजिङ्ग डायरैक्टर तिलक बीमा कं० लि० न्यू देहली ) की प्रार्थिक सहायता से प्रकाशित की जारही है । पुस्तकका मूल्य इसीलिये रक्खा गया है, ताकि इसका उचित उपयोग हो सके । पुस्तककी बिक्रीसे जो सहायता प्राप्त होगी, पुनः उससे कोई उपयोगी पुस्तक प्रकाशित की जासकेगी । लालाजीकी इस उदारताके लिये धन्यवाद ।
-व्यवस्थापक