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जैन-समाजका ह्रास क्यों ?
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जैनियोंकी अोरसे प्रतिनिधि पहुँचना तो दरकिनार, ऐसी आशा रखना भी व्यर्थ साबित हुना।
लेखानुसार जैन-समाजसे २२ जैनी प्रतिदिन घटते जारहे हैं और हम उफ़ तक भी नहीं करते-चुप-चाप साम्यभावसे देख रहे हैं । एक भी सहधर्मीके घटने पर जहाँ हमारा कलेजा तड़प उठना चाहिये था जबतक उसकी पूर्ति न करलें, तबतक चैन नहीं लेना चाहिये था-वहाँ हम निश्चेष्ट बैठे हुए हैं ! देवियों के अपहरण और पुरुषोंके धर्म-विमुख होने के समाचार नित्य ही सुनते हैं और सिर धुन कर रह जाते हैं ! सच बात तो यह है कि ये सब कांड अब इतनी अधिक संख्या में होने लगे हैं कि उनमें हमें कोई नवीनता ही दिखाई नहीं देती-हमारी आँखें और कान इन सब बातों के देखने सुननेके अभ्यस्त हो गये हैं।
जैन-समाजकी इस घटतीका ज़िम्मेवार कौन है ? जन-समाजके मिटानेका यह कलङ्क किसके सिर मदा जायगा ? बास्तवमें जैन-समाजकी घटतीके जिम्मेवार वे हैं, जिन्होंने समाजकी उत्पादन-शक्तिको क्षीण करके उसका उत्पत्ति स्रोत बन्द किया है और मिटानेका कलंक उनके सर मढ़ा जायगा, जिन्होंने लाखों भाइयोंको जाति-च्युत करके धर्म-विमुख कर दिया है और रोजाना किसी न किसी भाईको समाजसे बाहर निकाल रहे हैं। ___ हायरे अनोखे दण्ड-विधान !!! तनिक किसीसे जाने या अनजानेमें भूल हुई नहीं कि वह समाज से पृथक् ! मन्दिर में दर्शन करते हुए ऊपरसे कबूतरका अण्डा गिरा नहीं कि उपस्थित सब दर्शनार्थी जातिस खारिज ! गाड़ीवानकी असावधानीसे पहियेके नीचे कुत्ता दब कर