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रामायण
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गाना नं०८ ( तर्ज-नर तेरा चोला रत्न अमोला) पाया मनुष्य जन्म अनमोल, वृथा खोवे मतीना ॥टेका सीखो नित्य प्रति धर्म कमाना, ये ही काम अन्त मेंाना ।
साधन फिर मुश्किल से पाना, विषे में जावे मतीना ॥१॥ सुपना दौलत राज खजाना, तज गये इन्द्रचन्द्र महाराणा।
सभी को पड़ा अन्त पछताना, नींद में सोवे मतीना ।।२।। जिसने त्याग धर्म को धारा, उसने पाया मोक्ष द्वारा।
तप जप करके कर्म विडारा, निज गुण खोवे मतीना ॥३॥ ध्यावो धर्म शुक्ल दो ध्यान ये ही सर्वज्ञ का फरमान ।
लाकर कर्मो से मैदान पांव हटावे मतीना ॥४॥
सुना दुख आवागमन का,वमन किया अनित्य चमन का। ताज सुकेशी को दिना, संयम ले तडित केश ने अक्षय मोक्ष सुख लीना ॥
चौपाई
वानर द्वीप धनो दधि राजा। संयम ले सारा निज काजा । किष्किन्धी किष्किन्धा नायक । लंक सुकेशी अति सुखदायक ।
दोहा क्षीर नीर सम प्रेम है। दोनों का शुभ ध्यान। .
राज ऋद्धि सुख भोगते । मानो स्वर्ग समान । मानो स्वर्ग समान, किसी का भय न कोई दिल में है। दिन दिन बढ़ता प्रेम एकता हित, सब ही जन मे है ।।