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विकसित माना जाता है। जंगली जातियो तथा सभ्य जातियों के बीच यही एक विभाजक रेखा है। बूढ़ा भारत अपनी पराधीनता की अवस्था में भी विजेताओं का श्रद्धा-पात्र बना रहा, इसमे यही रहस्य अन्तर्निहित है । जैन रामायण हमारे गौरवमय अतीत की सजीव गाथा है। इसमें साहित्य और इतिहास का विलक्षण समन्वय है । इतिहास जब साहित्य में से छनकर आता है तब वह और भी प्राणप्रद हो उठता है। अतः हमारा कर्तव्य है कि अपने वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन के आदर्श तथा स्फूर्ति के लिए जैन रामायण का पठन-पाठन बनाए रक्खे। इस महती गौरवगाथा का अभाव समाज को चिरकाल से खटक रहा था। प्रस्तुत ग्रन्थ उन्हीं सब भाइयों की प्रेरणा का फल है ।
द्विजकुमार शास्त्री, एम. ए.
न्यायतीर्थ