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________________ बालि-वश २३ अपने गौरव जैसा प्राणी, बस औरो का गौरव माने। सब काम सरलता का अच्छा, चाहे कोई बुरा भला माने ।। कल से यहाँ बाग तेरे की, आकर घूमन घेरी लाते हैं। बस सौ बातो की बात यही, अतितर हम तुमको चाहते है ।। अनुकूल चाहे प्रतिकूल कहो, लिखना यह खास हमारा है। इसका ना समझे दोष कोई, जो पहिरेदार तुम्हारा है ॥ यदि उत्तर हॉ मे है तो फिर कहना सुनना कुछ और नहीं । गर उत्तर नामे होनी आगे, कुछ चलता जोर नही । दोहा पत्र ऐसा लिख दिया, कर चौतरफी बन्द । पद्मा का ऊपर लिखा, नाम आप सानन्द ।। आगे बढ कर दिया फैक, जहाँ पर वह आती जाती थी। और संध्या भी अपना सौन्दर्य, लेकर सन्मुख आती थी । धमकल पहिरेदार उधर से, खाद्यपदार्थ लाया है ।। आगे धर कर मिष्टान सभी, श्रीकंठ को वचन सुनाया है। दोहा पांच मोहर से अधिक, यह लीजे सब मिष्टान्न । बैठ आप यहां कीजिये, भोजन और जलपान ।। मेरा शृङ्गार मुझे दीजे, अपने पहरे पर डटता हूँ। सब कारण आप जानते है, सग खाने से जो नटता हूँ राजकुमारी की संध्या अब, स्वागत करने आई है। फिर हमतो उनके सेवक है, आजीविका जिनसे पाई है ।। पराधीन सपने सुख नाही. सत्य किसी ने कह डाला । कारण यह पूर्व जन्म मे नही, हमने कुछ शुद्ध धर्म पाला ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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