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________________ १६ रामायण दौड़ सुनो जो मन चित लाके, ध्यान एकाग्र जमाके । यदि होवे चित खिलारी । तो सुनने की अभिलाष मत करो सुनो नर नारी ॥ चौपाई सच्चे मन से धारे सोई, शिक्षा मिले और सम्पति होई । पावन महा नाम अभिराम, सिद्ध हुए सुख आठो याम ॥ दोहा जो शूरा कर्त्तव्य मे वही धर्म मे जान । पाकर यहाँ विशेषता, अन्त गये निर्वाण | लक्ष्मण रावण जन्मान्तर मे, तीर्थंकर पद पावेगे । अष्टकर्म दल को क्षय करके, मोक्ष धाम मे जावेंगे ॥ अभी देर तक कर्मबन्ध, फल बल द्वारे भुगतावेंगे । फिर अनुक्रम से मनुष्य जन्म, मे शुक्ल ध्यान ध्यावेगे ॥ दौड़ बारवें स्वर्ग मंझारी बैठी है जनक दुलारी । हुकम सब के उपर है, सीतेन्द्र हुवा नाम करी ॥ पूर्व करनी दुष्कर है ॥ दोहा राम कथा अभिराम है, तजो निद्रा घोर । जो जो कुछ बीतक हुआ, सुनो सभी कर गौर ॥ सुनो सभी कर गौर, यहां वृतान्त सभी है बतलाना । अद्भुत रंग दमकता था, इतिहास सुनहरी है माना ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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