SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०० रामायण देखूं तेरा जोर करू पापी, धड़ से सिर न्यारा । निर्भय हो जा रहा लंक, नहीं जाना मिले सुखारा ॥ छोड़ अभी सीता को नही, मारू घर तान दुधारा । रामचन्द्र की नार चुरा, फांसा निज गल में डारा ॥ दौड़ PLEAS बेशर्म शर्म न आई, क्या अबला नार चुराई | भुजा फड़कें हैं मेरी, झेल मेरा ये वार, जान संकट मे आगई तेरी ।। दोहा रावण यो कहने लगा, जरा जरा मुस्काय । गीदड़ की वे कजा, ग्राम सामने जाय || उछल कूद कर मेंढक सा, किसको तलवार दिखाता है || प्रबल सिंह के ऊपर भी, आकर क्या धौस जमाता है ॥ जान बचाकर भाग अरे, मूर्ख क्यो प्राण गंवाता है । कोई गरीब मार न हो जावे, मुझको विचार यह आता है || दोहा झगड़ा दोनों में बढ़ा, लगा होन संग्राम | रत्नजटी ने लगा दई, अपनी शक्ति तमाम || तीव्र हवा में टिक नही सकता पक्का आम । इसी तरह तूफान सम, रावण था उस धाम । छन्द काट शस्त्र तोड़कर विमान सब बेपर किया । लाचार हो नीचे गिरा, कर्तव्य पूरा कर दिया | कंबू गिरी पर आ गिरा, कंबू ही नामा द्वीप है । गिरते गिरते छिल गया, सारा जिस्म क्या पीठ है ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy