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श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र
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खबर नही कुछ आपको. स्कन्धक पहुंचा प्राय । राज्य लेने के वास्ते, गुप्ती भेप बनाय ॥ मन्त्री तेरी भूल है, यह मुनि है गुण धार । त्याग दिया ससार सब, करते धर्म प्रचार ।। निज कर्तव्य मैंने किया, जो मुझ पर था भार ।
नमक खाय कर आपका, देऊँ सलाह सुखकार ।। देऊँ सलाह सुखकार, बाग मे चलो संग अब मेरे। शस्त्र दारु गोला देखो, गुफिया पांच सौ चेहरे॥ सहस्र सहस्र पर भारी है, एक शूरवीर दल घेरे। आलस्य मे जो पड़े रहे, तो मौत पुकारी नेड़े।
चलो अब देर न लावो, देख आज्ञा फर्मावो । यदि स्कंधक न होता, कष्ट नहीं देता तुमको सब काम मैं खुद कर देता ।। ।
दोहा (सुगुप्त) गदी के हाते गधे, जिन्हे न कुछ पहिचान । जहाँ लगाये लग गये, तज गौरव का ध्यान ।। मन्त्री को ले बाग मे, तुरत गए भूपाल ।
दारु गोला शस्त्र सब, दिखलाया जंजाल || दिखलाया भ्रम जाल, भूप को चढ़ा रोष अति भारी । सोचा यदि किया आलस्य तो, करेगा दुष्ट ख्वारी ।।