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________________ वनमाला जब सभा ऐन भरपूर हुई, दर्शक जन दर्शन करते है। उस समय 'महीधर' भूप राम, आगे यो गिरा उचरते है। - . दोहा (राजा) नम्र निवेदन है यही, सुनिये कृपा निधान । किस दिन होना चाहिये, शादी का सामान । बोले राम सुनो राजन् , इस समय विवाह का काम नहीं। भ्रमण हमारा बन मे है, और निश्चय कोई धाम नही ।। उसी समय सब कुछ होगा, जब पुरी अयोध्या आवेगे। बस विदा करो अब तो हमको, जहाँ लगा ध्यान वहां जावेंगे। दोहा इतने मे एक दूत झट, आया सभा मंझार। । ऐसे महीधर सामने, खोला कथन पिटार ।। दोहा (दूत) क्षत्रिय कुल मणिमुकुट, संकट भंजन हार। कृपा सिन्धु मेरी करो, नमस्कार स्वीकार ।। गौरवशाली भूपति, शूरवीर सिर ताज । विन्ध्या पुरवर नगर से, आया हूं महाराज ॥ अति वीर्य नृप ने है भेजा, उनका प्रणाम बताता हूँ। मै आया हूँ जिस कारण सारा, भेद खोल समझाता हूं। भरत भूप सज रणभूमि मे, युद्ध नित्य अति जारी है। अवधेश भरत की सेना, अब तक हटी न जरा पिछाड़ी है ।। श्री भरत संग भूप बहुत आये, कुछ कहा न जाता है। जहाँ युद्ध हो रहा घोर शब्द सुन, फलक जमी लर जाता है। अव दल बल लेकर चलो, भूप ने आप को जल्द बुलाया है। बस आपके वहां पहुंचते ही, होगा निज पक्ष सवाया है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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