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रामायण
वनमाला विजयपुरी के जंगल में, वट वृक्ष एक भारी है। करें यहीं विश्राम यही, इच्छा दिल में धारी है।
दौड देख छाया खुश मन है, खिला जैसे गुलशन है। नगर में अनुज पठाया, जो कुछ थी इच्छा सब ही खाना पीना ले आया।
दोहा भोजन कर श्रीराम जी, बैठे आसन लाय ।
शोभा अद्भुत वट वृक्ष की, सोच रहे मन मांय ।। यह वृक्ष विशाल अनुपम है, बल्ली भूमि पर लटक रही। है चहुं श्रार दाढ़ी जिसके, कुछ गड़ी धरन कुछ चिपट रही ।। है गृह के मानिन्द बना हुआ, और बड़ी दूर तक छाया है। एक पास सरोवर भरा हुआ, निर्मल जल अति सोभाया है ।। जब सूर्य अस्ताचल पहुंचा, श्रीराम ने संध्या ध्यान किया। आगया समय जब निद्रा का, निज-निज आसन विश्राम किया । लक्ष्मण जाग रहा पहरे पर, अतुल वीर बलधारी है। अब विजयनगर का हाल सुनो, जिसका सम्बन्ध अगारी है।
( बनमाला कुमारी का वर्णन)
गाना नं० ४२
तर्ज-कव्वाली महीधर नाम राजा का, विजयपुर राजधानी थी। सुता का नाम बनमाला, रूप में जो इन्द्राणी थी ॥ १ ॥