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________________ ३१४ रामायण दोहा कहे यक्षणी कपिल से, यह बन खंड उद्यान । इम्भकर्ण वर यक्ष ने, नगर बसाया आन ।। दोहा ( यक्षणी) देव करी रचना सभी, वास बसे श्री राम । करे याचना जो कोई, देते वांछित दाम || याचक को वादल समान, कंचन श्रीराम बरसते हैं। तव कहे कपिल हम हैं गरीव, पैसे के लिये तरसते हैं। तू बता किस तरह नगरी में, जाऊं और दान मिले मुझको । यदि इच्छा हो पूर्ण मेरी, खुश हो अाशीस देऊं तुझको ।। दोहा । यनों का पहरा यहां, नगरी क्या उद्यान । बिना सहायक के कोई, धस नहीं सकता ान । यत देव रक्षा करते, फिर कौन वहां जा सकता है। हाँ परमप्टी मन्त्र जो जाने, वही फल पा सकता है ।। यदि हो वारह व्रत का धारी, फिर तो कहने की बात ही क्या । इन्द्र भी नहीं रोक सकता, फिर और की पार बसाती क्या ।। दोहा कपिल गया जहां मुनि थे, प्रथम नमाया माथ । नमोकार मन्त्र धारण किया, गृहस्थ धर्म के साथ ।। संग विप्राणी को दिला देशव्रत रामपुरी में आया है। सिया राम लखन को देख विप्र, मन ही मन अति शर्माया है ।। फिर बोले लक्ष्मण कहो विप्र ! कैसे आदर्श दिखाये हैं। देकर आशीर्वाद बोला, बस शरण आपकी आये हैं ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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