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________________ भीलनी दोहा ( राम ) कहां तेरा पतिदेव है, और सभी परिवार । क्या नाम आप का भीलनी, मिला धर्म कहां सार ॥ दोहा ( भीलनी ) ३०३ सम्बद्ध नहीं कुछ पति से, सम्बन्धी दिये छोड़ । नाम उद्यमिका है मेरा, मन सब से लिया मोड़ ॥ परोपकारी मिले मुनि, जिन को मै मारन धाई थी । हानि न उसको पहुँचा सकी, निज शक्ति सभी लगाई थी ॥ फिर महा पुरुष निर्ग्रन्थ मुनि ने मुझे अपूर्व ज्ञान दिया । जो आत्मका कल्याण करे, सम्यक्त्व रत्न यह दान दिया || दोहा ( भीलनी ) अरिहन्त सिद्ध आचार्य, उपाध्याय मुनिराज । गुण इनका हृदय धरो, महामुनि सिरताज ॥ शरणा भी उत्तम बतलाया, अरिहन्त सिद्ध साधु जन का । मन वचन काय को शुद्ध करो, और पाप हरो अपने मन का || मत मारो निरपराधी को, प्राणीमात्र पर दया करो | चोरी जारी जुआ मदिरा, अभय मांस को परिहारो || नित्य ध्यान करो अपने हक पर, यह धर्म मुख्य है आत्मका । बाकी स्वप्ने की माया है, नित्य ध्यान धरो परमात्म का ।। मैत्री भाव रखो सब पर, गुणियों का आदर भाव दुर्बल पर कृपा करो सदा, विपरीत ये माध्यस्थ भाव धरो ॥ करो । दोहा आत्म शुद्धि के लिये, जपा करो यह जाप । सोऽहं सोऽहं जपन से करें दुष्ट सब पाप ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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