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________________ ३०० रामायण .. सुता हुई पीछे रानी के और नहीं कोई लड़का है। वृद्धावस्था बालिखिल्य की, यह भी दिल में धड़का है। बालिखिल्य है किस हालत मे, यह हमको कुछ खबर नहीं । यदि करें लड़ाई जाकर के, दस्यु दल से हम जबर नहीं॥ फिर सोचा कि पुत्री जन्मी, कहीं सिंहोदर सुन पायेगा। राजपाट सबके ऊपर, अपना अधिकार जमायेगा .. इस आपत्ति से बचने के लिये, रलमिल एक बात बनाई है। 'पुत्र जन्मा महारानी के यह बात प्रसिद्ध कराई है। . . दोहा सिंहोदर को यह खबर, पहुंचाई तत्काल । सहित बधाई उत्तर यों, भेज दिया भूपाल ॥ राजतिलक दो राज कुमार को सिंहोदर फरमाया है । मन्त्री ने अपनी बुद्धि से, यह सारा ढङ्ग रचाया है । पल्ली पति को लालच भी, हम द्रव्य बहुत सा देते हैं। फिर भी न तजते अपना हठ, इसलिए महा दुःख सहते है । दोहा वज्रकरण का जिस तरह, दीना कष्ट निवार। नाथ हमारा भी जरा, कीजे तनिक विचार । यों बोले राम यह भेष पुरुष का, अभी न तन से दूर करो। बालिखिल्य को छुड़वा देंगे, तुम अपने मन में धीर धरो ।। देकर के सन्तोष राम फिर, नदी नर्मदा आये है। निर्भयता से विंध्या अटवी की, ओर आप चल धाये हैं।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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