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रामायण
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दोहा आज्ञा पा महाराज की, हो झटपट तैयार । मंत्रीश्वर वहाँ से चला, जरा न लाई वार । जरा न लाई वार तुरन्त, पश्चिम दिशि को है धाया। मिले दूर कानन में जा, मंत्री ने शीश नमाया ॥ जो था मतलब खास, अवध का सारा हाल सुनाया। बोले अवध पुरी में नप ने, आपको जल्द बुलाया ।
दौड़ चलो अब देर न लावो, क्लेश उपशान्त बनाओ। ख्याल कुछ करो इधर का होवे सब दुख दूर चरण जहाँ हो गरीब परवर का।
दोहा ( राम) वापिस जा सकता नहीं, हूँ मंत्री लाचार |
अब कुछ वर्षों के लिये, है बन का आधार ।। तुम जाओ अवध में भरत वीर को,
वचन मेरा यह कह देना। अब तू अपने को राम समझ,
और मुझको भरत समझ लेना ।। श्री दशरथ नृप घर हम चारो, सुत एक सरीखे जाये है । हम सबको यह स्वीकार भूपति, भरत वीर शोभाये है ।। मात पिता को आज तलक का क्षेम कुशल बतला देना। सब यथायोग्य प्रमाण तात, माताओं को जतला देना ॥ तुम भरत वीर को गद्दी पर, समझा करके बैठा देना। और धूम धाम से छत्र लगाकर, ऊपर चमर झुला देना ।।